I reprised/rewrote lines from nineties — ” शीतल, श्यामल सुरभित शाम बरखा की बूंदों में भीगी शर्माई सकुचाई शाम पायल की छनछन को रोके होंठ काटती हंसी को रोके दबे पाँव चलते चलते आंखों पर करतल रख पूछे है – ‘मैं हूँ कौन’ सखी तुम प्रारब्ध मेरा कुछ कर्म अच्छे किये होंगे जो तुम आई कुछ कर्म तुम्हारे बिगड़े होंगे जो तुम्हें हम मिले बहरहाल सावन है बारिश है शाम है यौवन है हम हैं तुम हो कल किसने देखा है” Loading... Reply
Lovely!!
Beautiful.
I reprised/rewrote lines from nineties —
”
शीतल, श्यामल सुरभित शाम
बरखा की बूंदों में भीगी
शर्माई सकुचाई शाम
पायल की छनछन को रोके
होंठ काटती हंसी को रोके
दबे पाँव चलते चलते
आंखों पर करतल रख
पूछे है – ‘मैं हूँ कौन’
सखी
तुम प्रारब्ध मेरा
कुछ कर्म अच्छे किये होंगे
जो तुम आई
कुछ कर्म तुम्हारे बिगड़े होंगे
जो तुम्हें हम मिले
बहरहाल
सावन है
बारिश है
शाम है
यौवन है
हम हैं
तुम हो
कल किसने देखा है”
Lovely! Thanks…